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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वीर बली हनुमान का करता हूँ गुणगान

  वीर बली हनुमान का करता हूँ गुणगान वीर बली हनुमान का करता हूँ गुणगान , है माँ अंजनी का लाला , देवों में देव महान सिया राम के सेवक प्यारे पवन पुत्र बजरंग बली , वीरो के है वीर बली और देवों में है महाबली , आफत विपदा छट जावै , जो धरता इनका ध्यान लंकपुरी में जाके हनुमत सीता की सुध लाए थे , रातो रात उठा पर्वत लक्ष्मण के प्राण बचाए थे , रावण की लंक जलाई , थे वो इतने बलवान केशरीनंदन है जगवंदन भक्तों के हितकारी है , जिसने इनका ध्यान लगाया मेटी विपदा सारी है , जो इनकी शरण में जावैं , ये कर देते कल्याण राम लखन के प्राण बचाये अहिरावण को मारा था , सागर लांघ गए लंका में वो भी अज़ब नज़ारा था , कहे 'देवकीनंदन' वीर बली , थारे चरणों में प्रणाम

हे रघुपति प्रिय मारुति नन्दन bhajan lyrics

  हे रघुपति प्रिय मारुति नन्दन- Hanuman ji bhajan lyrics हे रघुपति प्रिय मारुति नन्दन, हम भी तुमको दिल दे बैठे , इस दिल के सिवा कुछ पास नहीं, यह दिल भी तुम्हारा कर बैठे, हे रघुपति प्रिय मारुति नन्दन...... भय रोग शोक सन्ताप प्रभु , अब ब्याप्त नहीं मेरे मन में, जब से पकड़ा तेरे चरणों को, सब दुःख दर्द किनारा कर बैठे, हे रघुपति प्रिय मारुति नन्दन........ तुम मेरे थे मेरे हो,मेरे ही रहोगे राम सखा , प्रभु तुम्हे छोड़ कोई चाह नहीं, तेरी प्रीत से झोली भर बैठे, हे रघुपति प्रिय मारुति नन्दन..... हे अजर अमर अंतर्यामी, संकट मोचन हनुमान प्रभु , अब शरण तुम्हारे आये हैं, हम श्रद्धा से झुकाये सर बैठे, हे रघुपति प्रिय मारुति नन्दन , हम भी तुमको दिल दे बैठे........

श्री शनि चालीसा (Shri Shani Dev Ji)

श्री शनि चालीसा (Shri Shani Dev Ji)  ॥ दोहा ॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल । दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज । करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥ ॥ चौपाई ॥ जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥ चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥ परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥ कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥ ४॥ कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥ पिंगल, कृष्णों, छाया नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥ सौरी, मन्द, शनी, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥ जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं । रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥ ८॥ पर्वतहू तृण होई निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ॥ राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥ बनहूँ में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ॥ लखनहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ॥ १२॥ रावण की गतिमति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥ दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ॥ नृप विक्रम पर तुहि ...

श्री नवग्रह चालीसा (Shri Navgrah Chalisa)

श्री नवग्रह चालीसा (Shri Navgrah Chalisa)  ॥ दोहा ॥ श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय । नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय ॥ जय जय रवि शशि सोम, बुध जय गुरु भृगु शनि राज। जयति राहु अरु केतु ग्रह, करहुं अनुग्रह आज ॥ ॥ चौपाई ॥ ॥ श्री सूर्य स्तुति ॥ प्रथमहि रवि कहं नावौं माथा, करहुं कृपा जनि जानि अनाथा । हे आदित्य दिवाकर भानू, मैं मति मन्द महा अज्ञानू । अब निज जन कहं हरहु कलेषा, दिनकर द्वादश रूप दिनेशा । नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर । ॥ श्री चन्द्र स्तुति ॥ शशि मयंक रजनीपति स्वामी, चन्द्र कलानिधि नमो नमामि । राकापति हिमांशु राकेशा, प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा । सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर, शीत रश्मि औषधि निशाकर । तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा, शरण शरण जन हरहुं कलेशा । ॥ श्री मंगल स्तुति ॥ जय जय जय मंगल सुखदाता, लोहित भौमादिक विख्याता । अंगारक कुज रुज ऋणहारी, करहुं दया यही विनय हमारी । हे महिसुत छितिसुत सुखराशी, लोहितांग जय जन अघनाशी । अगम अमंगल अब हर लीजै, सकल मनोरथ पूरण कीजै । ॥ श्री बुध स्तुति ॥ जय शशि नन्दन बुध महाराजा, करहु सकल जन कहं शुभ काजा । दीजै बुद्...

श्री राम चालीसा (Shri Ram Chalisa)

श्री राम चालीसा (Shri Ram Chalisa) ॥ दोहा ॥ आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम् पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं ॥ चौपाई ॥ श्री रघुबीर भक्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥ निशि दिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ॥ ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥ जय जय जय रघुनाथ कृपाला । सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥ दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥ तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥ तुम अनाथ के नाथ गोसाईं । दीनन के हो सदा सहाई ॥ ब्रह्मादिक तव पार न पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥ चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥ गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ 10 ॥ नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ॥ राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥ गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥ शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ॥ फूल समान रहत सो भारा । पावत को...

श्री विष्णु चालीसा (Shri Vishnu Chalisa)

श्री विष्णु चालीसा (Shri Vishnu Chalisa)   ॥ दोहा॥ विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय । कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय । ॥ चौपाई ॥ नमो विष्णु भगवान खरारी । कष्ट नशावन अखिल बिहारी ॥ प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी । त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥ सुन्दर रूप मनोहर सूरत । सरल स्वभाव मोहनी मूरत ॥ तन पर पीतांबर अति सोहत । बैजन्ती माला मन मोहत ॥4॥ शंख चक्र कर गदा बिराजे । देखत दैत्य असुर दल भाजे ॥ सत्य धर्म मद लोभ न गाजे । काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥ संतभक्त सज्जन मनरंजन । दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ॥ सुख उपजाय कष्ट सब भंजन । दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥8॥ पाप काट भव सिंधु उतारण । कष्ट नाशकर भक्त उबारण ॥ करत अनेक रूप प्रभु धारण । केवल आप भक्ति के कारण ॥ धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा । तब तुम रूप राम का धारा ॥ भार उतार असुर दल मारा । रावण आदिक को संहारा ॥12॥ आप वराह रूप बनाया । हरण्याक्ष को मार गिराया ॥ धर मत्स्य तन सिंधु बनाया । चौदह रतनन को निकलाया ॥ अमिलख असुरन द्वंद मचाया । रूप मोहनी आप दिखाया ॥ देवन को अमृत पान कराया । असुरन को छवि से बहलाया ॥16॥ कूर्म रूप धर सिंधु मझाया । मंद्राचल गिरि तुरत उठाया ...

Shiva Chalisa : श्रावण मास में पढ़ें पवित्र श्री शिव चालीसा- जय गिरिजा पति दीन दयाला

Shiva Chalisa : श्रावण मास में पढ़ें पवित्र श्री शिव चालीसा- जय गिरिजा पति दीन दयाला ।।दोहा।।   श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥  जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥ दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। ...

दुर्गा चालीसा

   दुर्गा चालीसा   नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥   निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥   शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥   रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥   तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥   अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥   प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥   शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥   रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥   धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥   रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥   लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥   क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥   हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥   मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥   श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥   केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर व...

श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा  दोहा  श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।  बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।    चौपाई  जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।   महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।   कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।   हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै।   संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।   विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।   प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।   सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।   भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।   लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।   रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।   सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।   सनकादिक ब्रह्मादि ...